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गधे को बाप बनाना


             *3.* गधे को बाप बनाना ...!*

नौकरी ना मिल पाने की वजह से महेश बहुत परेशान था तो राघव उसे शहर घुमाने ले गया। वहां उसकी मुलाकात स्नेहा से होती है। हल्के हंसी मज़ाक के बीच स्नेहा उसे अपने दोस्त के कैफे में रिसेप्शनिस्ट वाली नौकरी के बारे में बताती है जिस पर महेश सहमत हो जाता है। अब आगे


महेश को वहां काम करते करते दो महीने हो चुके थे। अपनी मेहनत और ईमानदारी से उसने साहिल का दिल जीत लिया था और उधर स्नेहा और राघव ने सगाई करने का फैसला ले लिया था। उनकी सगाई की जिम्मेदारी भी महेश ने अपने कंधों पर ले ली। यह सोचकर कि दोनों काम एक साथ हो जाएंगे। महेश ने कैफे में ही सारी अरेंजमेंट कर ली। पहली बार सगाई का फंक्शन हाथ में लिया था तो कहीं कोई गड़बड़ी ना हो जाए इसलिए महेश ने सोचा कि किसी वैडिंग प्लानर को भी साथ रख लेता हूं। 


"देख भाई यह सगाई और शादी का अरेंजमेंट करना बच्चों का खेल नहीं। बहुत बातें ध्यान में रखकर काम करना पड़ता है। लड़की वालों और लड़के वालों दोनों को खुश करना बहुत मुश्किल काम है और रिश्तेदारों की बातें अलग से झेलनी पड़ती हैं। अब तुम मुझे ही देख लो। एक साल से इस धंधे में हूं लेकिन आज तक कोई शिक़ायत नहीं मिली मुझे।" वो प्लानर दिनेश बीस मिनट तक खुद की बढ़ाई ही करता रहा और महेश उसके पीछे पीछे उसी की तरह मुंह हिलाते हुए उसकी नकल किए जा रहा था। (महेश अपने मन में:- बस कर यार और कितना पकाएगा। मेरे कानों पर रहम कर मेरे भाई। अभी तो मैं खुद का खर्च ही मुश्किल से चला रहा हूं। ऐसे में अगर तुम्हारी बकवास से मेरे कान झड़ कर गिर गए तो नये कहां से लगाऊंगा।) महेश का दिल तो कर रहा था कि कहीं से एक ईंट उठा कर इसके सिर पर दे मारुं। पर बेचारा दोस्त की सगाई भी ख़राब नहीं करना चाहता था। उसने हाथ जोड़ कर की तरफ देखा और भगवान से मनुहार करने लगा। भगवान ने भी थोड़ी देर में ही जैसे उसकी सुन ली।


"सगाई करवाने के लिए पूरे इलाहाबाद में तुझे भी यही गधा मिला था। हर दस मिनट काम में लगाता था और फिर बीस मिनट ज्ञान बघारने में लग जाता था। यहां सगाई के छोटे से फंक्शन में ही मेरी यह हालत बना दी है। पता नहीं शादी वाले घर में लोग इसे कैसे झेलते होंगे।"


"दिल तो कर रहा कि इस गधे को उठा कर बाहर फेंक दू लेकिन क्या करुं। सगाई हो जाने तक तो इस ज्ञान दर्पण को झेलना ही पड़ेगा। अब मैंने गधे को बाप बनाया है तो दुलत्ती भी तो मुझे ही खानी पड़ेगी।" महेश ने अपने मन को समझाते हुए खुद से कहा।


"बिल्कुल सही बोल रहे हो भाई। बहुत पकाता है यह इंसान। मेरे भतीजे की शादी में भी इसने पिछले एक साल की अपनी कारगुज़ारी सुना सुना कर हम सबके कानों में दर्द होने लगा दिया था। पास से ही गुजरते एक शख्स ने जब उससे सहमति जताई तो महेश ने अपना माथा पीट लिया।

"सगाई का महूरत हो गया है। लड़के और लड़की को बुलाया जाए।" जैसे ही पंडित जी की आवाज महेश के कानों में पड़ी तो उसकी सांस में सांस आई। 

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4 Comments

Gunjan Kamal

13-Feb-2023 11:18 AM

बहुत खूब

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अदिति झा

07-Feb-2023 11:47 PM

Nice 👌

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Zakirhusain Abbas Chougule

07-Feb-2023 09:34 PM

Nice

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